वैदिक काल मैं वैदिक कर्मकांड और तांत्रिक साधनाए आगे जाकर बदलाव और वक़्त की जरुरत के साथ आपस मैं एक दुसरे के साथ मिलने लगी सच्चाई नेतिकता आदर्शो की कमी और समाजिक गिरावट ताकतों के अत्याचार और ताकतों के केन्द्रीकरण से अलोकिक शक्तियों की जरुरत बेहद महसूस होने लगी ( विष्णु साधना )
इसका मतलब ये हुआ की अधिकतम उपलब्धि और सफलता के उपकर्म से दोनों पद्तियो पर खोज हुयी दोनों आपस में मिलने भी लगी वैदिक देवताओ की तांत्रिक पदति से साधना होने लगी और और वैदिक कर्मकांड तांत्रिक साधनाओ मैं आकर मिल गया आज ये आपस में पूरी तरह मिल चुके है( विष्णु साधना)
इस पदति से सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है इस पदति में 3 तरह की उर्जा एक साथ काम करती है
वस्तुगत उर्जा
ध्वनि की उर्जा
मानसिक बल की उर्जा
Contents
विष्णु की सामान्य सिद्धी से ज्ञान , विवेक , चेतना और संकल्प की असाधारण बढ़ोतरी होती है उच्च स्तर की सिद्धी होने पर त्रिकाल दर्शिता प्राप्त हो सकती है मतलब की आप भूत , भविष्य , वर्तमान तीनो देख सकते है
विष्णु साधना के लिए आपको चाहिए (विष्णु साधना)
पिला आसन , पीले फूल , पीले वस्त्र , चन्दन की चोकी , सफेद चन्दन, तुलसी दल , घी , जल , शुद्ध व्रक्ष की लकडिया जैसे की आक , चिडचिडी , बेल , अनार , आम , शमी , आदि , दूब , तील , जो , अरवा चावल , धुप , गुग्गुल , दही , ताम्बे के जल पात्र आदि
विधि
शाम से पहले ही 9 हाथ लम्बा और 9 हाथ चोडा जमीन को साफ़ करके उसे गोबर मिटटी के मिश्रण से लिप कर साफ़ कर ले इसके चारो और सिंदूर , कपूर , लोंग के मिश्रण को मिलाकर एक सुरक्षा घेरा बना ले
इस जमीन के ईशान कोण में सवा हाथ भुजा वाली एक वर्ग पूर्व की और इस प्रकार बनाये की उसके पश्चिम आसन बिछाने और पूजा सामग्री रखने के बाद भी सब कुछ 9 वर्ग हाथ पर निपट जाए मतलब सब कुछ ईशान कोण के 3 हाथ लम्बे और 3 हाथ चोडे में ही होना चाहिए वेदी भूमि पर ही बनेगी ( Vishnu Sadhna )
यह साधना तंत्र से संबंधित है इसलिए मूल पदति वही रहती है अगर इस साधना को घर मैं करना चाहते है तो किसी एकांत कमरे मैं किया जा सकता है जिसमे फर्श की जमीन ना हो जमीन मिटटी की हो क्युकी वेदी मिटटी पर ही बनेगी और कमरा कम से कम 15 फूट लम्बा चोडा हो
और जिसमे खुली हवा का आना जाना हो अगर ऐसा संभव नहीं है तो किसी बाहरी स्थान की व्यवस्था की जाए झा एकांत हो पदति मैं हवन की विशेष भूमिका है इससे पैदा होने वाली उर्जा ध्वनि मानसिक बल की उर्जा के साथ मिलकर वातावरण मैं विष्णु की उर्जा से संपर्क बनाती है और इसे साधक तक आकर्षित करती है
कैसे करे
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर यानि की सुबह 3 बजे उठकर सभी तरह स्वच्छ होकर वेदी के पास आसन बिछाकर सभी सामग्री रखे और पूर्व की और मुह करके सुखासन मैं बैठे प्राणायाम पवित्रीकरण कर ले
एक ताम्बे के कलश मैं जल भर कर रखे चन्दन की चोकी पर तुलसी की कलम से सफेद चन्दन के घोल से विष्णु यंत्र लिखे आप यह यंत्र बाजार से भी खरीदकर ला सकते है अब यंत्र और जलपात्र की पूजा करे उसके बाद भूमि के चारो और सुरक्षा घेरे पर जो के आते , चावल , सिंदूर , तुलसी जल को मन्त्र पढ़ते हुए छिडके अब अग्नि मंत्र पड़ते हुए पूर्व की और मुख करके गाय के कंडे से चिंगारी से अग्नि जलाये( विष्णु साधना)
अग्नि मंत्र
ॐ अग्नेय स्वाहा
इंद अग्नेय इंद न मम
जब अग्नि सुलग जाए तो इसे ध्यान लगाकर प्रणाम करे फिर थोड़ी लकड़ी डालकर विष्णु की साकार छवि या ॐ को ध्यान में लाकर मंत्र पड़ते हुए अग्नि में हवी दे
मंत्र
ॐ नमः नारायणाय स्वाहा
हवी 108 बार दी जाएगी पूरी तरह धीरे धीरे एकाग्रता और स्पष्ट मंत्र की ध्वनि के साथ
पूजन के समय मंत्र यही रहेगा हवन के समय उसमे स्वाहा का प्रयोग होगा जब 100 बार हव्य दाल दे तो बची हुई हवन सामग्री भी वेदी मैं डालकर अग्नि को प्रणाम करे( विष्णु साधना )
हवन के बिच में आवश्यकता अनुसार लकड़ी वेदी मे डालते रहे इस मोके पर विष्णु सहस्त्र का पाठ भी किया जा सकता है जो सामान्यतया हवन के बाद होता है
शस्त्र नाम से हवन भी किया जा सकता है जिसमे प्रत्येक श्लोक के प्रारंभ और अंत में उपर्युक्त मंत्र को लगाना चाहिए
विष्णु जी की सामान्य सिद्धी 108 दिन की होती है इस दोरान ब्रह्मचर्य का पालन बेहद जरुरी है सामान्य सिद्धी के बाद भी अगर लगातार लगे रहे तो सिद्धी का स्तर बढता जाता है फिर तो कुछ भी संभव है
चेतावनी
• यह साधना कोई भी कर सकता है किन्तु यह तांत्रिक साधना ही है
• मूल तांत्रिक पदति तप और गुरु के द्वारा करवाई जाती है लेकिन इसे कोई भी थोड़ी सावधानी से कर सकता है
• साधना में साधित की जा रही शक्ति वैदिक और सोम्य है इनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती
• कभी कभी पूजा से भी दूसरी शक्ति आकर्षित हो सकती है व्यक्ति के काम को बिगाड़ने और दिनचर्या परिवर्तित करने की कोशिश भी ये नकारात्मक उर्जा कर सकती है
( विष्णु साधना)
• इसलिए यह बेहद जरुरी है की साधना के दोरान साधक किसी उच्च साधक द्वारा बनाया हुआ शक्तिशाली तन्त्र ताबीज अवश्य धारण करे जिससे वह सुरक्षित रहे और साधना बिना किसी रुकावट के पूरी करे
• तीव्र कारी साधना होने से प्रतिकिया भी तीव्र हो सकती है इसलिए सुरक्षा भी तगड़ी होनी चाहिए
• आप जो यंत्र ताबीज धारण कर रहे है वह वास्तव में उच्च शक्ति को किया हुआ साधक ही अपने हाथो से बनाये और अभिमंत्रित किये हुए हो